7 चिरंजीवी ( अमर ) - कौन हैं और कहाँ हैं ?
मित्रों, अगर देखा जाए तो एक इंसान हमारी इस पृथ्वी पर ज्यादा से ज्यादा 100 या 120 साल के आसपास जिन्दा रह सकता है। लेकिन हमारे ग्रंथों और पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि आज भी हमारी इस धरती पर कुछ ऐसे लोग हैं जो अमर हैं, आखिर वो कहाँ हैं और किसका इन्तजार कर रहे हैं?
आज के इस आर्टिकल में हम आपको उन अष्ट चिरंजीवियों ( अमर ) के बारे में बताएंगे, जो ना जाने किस रूप में और न जाने कितने सालों से इस पृथ्वी पर हैं और किसी का इन्तजार कर रहे हैं। आखिर ये अष्ट चिरंजीवी हमारे सामने क्यों नहीं आते और अगर ये हमारे सामने आ गए तो क्या होगा ?
आज के इस आर्टिकल में हम इन्हीं अष्ट चिरंजीवियों के बारे में विस्तार से बात करेंगे।
कौन हैं - ये 8 चिरंजीवी ( अमर ) लोग ?
मित्रों, प्राचीन हिन्दू पुराण तथा ग्रंथों के अनुसार 8 ऐसे लोग हैं जो अमर हैं। ये सभी किसी न किसी वचन, श्राप या नियम से बंधे हुए हैं।
सबसे पहले मैं आपको सप्त चिरंजीवी के नाम बता देता हूँ। उन सप्त चिरंजीवियों के नाम हैं -
हनुमान, बलि, परशुराम, विभीषण, ऋषि व्यास, अश्वत्थामा, कृपाचार्य।
ये सभी सप्त चिरंजीवी कहलाते हैं।
इन सब के अलावा एक और चिरंजीवी हैं, वो हैं ऋषि मार्कंडेय। इनका नाम आठवें चिरंजीवी के रूप में आता हैं।
अब हम एक एक करके इन सबके बारे में विस्तार से जानेंगे -
1- हनुमान
हनुमान जी भी चिरंजीवी हैं। हनुमान जी की भूमिका रामायण में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण थी। हनुमान जी भगवान श्री राम के सच्चे भक्त थे और वह हर कठिन परिस्थिति में राम जी के साथ थे। जब रावण सीता जी का हरण करके उनको लंका ले जाता है उस समय श्री राम काफी चिंतित और परेशान थे क्योंकि लंका काफी दूर थी और वहां तक का सफर काफी कठिन था। उनकी इस समस्या का समाधान हनुमान जी ने किया। हनुमान जी उड़ सकते थे उन्होंने इस लंबे फासले को तय किया और रावण की लंका के अंदर अशोक वाटिका में जाकर सीता मैया को ढूंढा।
अब बात आती है कि हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान कैसे मिला ?
Jai Hanuman |
कहते हैं कि जब हनुमान जी ने सीता मैया को खोजा फिर हनुमान जी ने उन्हें बताया कि वे राम जी के दूत हैं, तो खुश होकर सीता मैया ने हनुमान जी को अमर होने वरदान दे दिया था। इसके अलावा जब रामायण के सारे पात्र को मोक्ष प्राप्ति हो रही थी तब हनुमान जी ने देवों से यह विनती की थी कि वह तब तक इस धरती पर रहना चाहते हैं जब तक इस धरती पर राम जी का नाम लिया जाएगा। इसलिए कहते हैं कि आज भी जब कोई सच्चा भक्त राम जी का नाम लेता है तो हनुमान जी वहां मौजूद होते हैं। इतना ही नहीं यह भी कहा जाता है कि जब भी इस धरती पर कहीं राम कथा होती है तो हनुमान जी सबसे पहले आने वाले और सबसे आखिर में जाने वाले राम जी के भक्त होते हैं। रावण को मार देने के बाद लोगों ने हनुमान जी से यह पूछा कि आप राम जी के सच्चे भक्त हैं यह सिद्ध करें, तो फिर हनुमान जी ने अपनी सीना चीर के दिखाया था जिसमे राम जी और सीता जी उनके दिल में निवास करते हैं। उसके बाद हनुमान जी का यह स्नेह देखकर राम जी ने उनको चिरंजीवी होने का वरदान दे दिया था।
2- बलि
राजा बलि जो बलि के नाम से जाने जाते हैं एक असुर राजा हैं और तीन लोक के राजा भी हैं। राजा बलि को देखने के बाद इंद्रदेव बलि को पसंद नहीं करते थे और इसलिए वह विष्णु जी के पास गए और विष्णु जी से विनती की, कि वह बलि को अपने कंट्रोल में करें। फिर भगवान विष्णु जी ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के पास गए और राजा बलि से चार कदम जमीन मांगी।
अब वामन को देखकर बलि ने उन्हें तुरंत हां कर दिया लेकिन यहां कुछ अलग ही हुआ वामन अवतार ने तीन कदम के अंदर ही तीनों लोक को नाप लिया और उसके बाद बलि के पास कोई रास्ता नहीं था। लेकिन राजा बलि के दिए वादे के अनुसार अभी भी एक कदम बाकी था तो विष्णु जी ने बलि से पूछा कि इस आखरी कदम का क्या किया जाए। इस पर राजा बलि बिना कुछ सोचे झुक गए और अपना सर आगे कर दिया इसे देखकर भगवान विष्णु बहुत खुश हुए और उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दिया।
3- परशुराम
परशुराम भगवान विष्णु जी के छठे अवतार थे और वह विष्णु जी के सबसे खतरनाक अवतार थे। परशुराम अस्त्र शस्त्र में काफी निपुण थे। वह एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे और ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म दुनिया की सारी बुराई को मिटाने के लिए हुआ था।
कहते हैं कि परशुराम एक चिरंजीवी है और आज भी हमारे धरती पर मौजूद हैं, क्योंकि कल्कि पुराण के मुताबिक जब कलयुग का अंत होने वाला होगा तब विष्णु जी अपने आखिरी अवतार में यानी कल्कि अवतार में पृथ्वी पर प्रकट होंगे। फिर परशुराम एक गुरु के रूप में सामने आएंगे और वह कल्कि को गाइड करेंगे कि अस्त्र-शस्त्र का इस्तेमाल कैसे करें जिसके चलते दुनिया की सारी बुराई खत्म हो जाएगी। इसलिए परशुराम भी एक चिरंजीवी हैं।
4- विभीषण
अब बात करते हैं विभीषण के बारे में क्योंकि विभीषण को भी अमरता का वरदान मिला हुआ है। यह बात उस समय की है जब राम और रावण का युद्ध हो रहा था। उसमें विभीषण ने राम जी की बहुत सहायता की थी, लंका की हर महत्वपूर्ण जानकारी और रावण की कमजोरी से उन्होंने भगवान राम को परिचित करवाया था। इसी वजह से श्री राम विभीषण से काफी प्रसन्न थे। वह विभीषण को अपना सबसे अच्छा मित्र मानते थे। यह कहानी तो हम सब जानते हैं और आप यह भी जानते होंगे कि युद्ध में रावण की मृत्यु के बाद श्री राम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया था। विभीषण लंका का राजकाज देख रहे थे परंतु उन्हें राम के दर्शन की आदत हो गई थी और जब भी उन्हें अवसर मिलता था वह लंका से तुरंत अयोध्या चले जाते थे और श्री राम के दर्शन किया करते थे। जब भगवान राम जी इस दुनिया को छोड़कर जाने वाले थे फिर विभीषण को जब यह बात पता चली तो विभीषण बहुत दुखी हुए। उन्होंने श्री राम से कहा कि ऐसे तो मैं जीवित नहीं रह पाऊंगा मुझे भी आप अपने साथ ले चलिए तब भगवान राम ने कहा - नहीं, आपके जाने का समय अभी नहीं आया। जैसे रावण और मेरे युद्ध में आपने मेरी सहायता की थी वैसे ही कलयुग के अंत में एक बहुत भीषण युद्ध होगा, जिसमें धर्म और अधर्म की एक बार और लड़ाई होगी और उस समय अधर्म को हराने के लिए आपको एक बार फिर मेरे ही एक अवतार का साथ देना होगा । इसके अलावा एक और कहानी यह है कि जिसमें कहा जाता है कि रावण मरते समय विभीषण से गुस्सा होकर उसे श्राप देता है कि तुम बिना परिवार के हमेशा ब्रह्मांड के अंत तक इस दुनिया में जीवित रहोगे और इसलिए विभीषण आज भी भगवान कल्कि की प्रतीक्षा में जिंदा है। ये था विभीषण की अमरता का कारण।
5- ऋषि वेद व्यास
वेद व्यास एक ऐसा नाम है जो भारतीय साहित्य में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। वेदव्यास जी को उनकी बुद्धि और ज्ञान के लिए जाना जाता है। आप लोग यह तो जानते ही होंगे कि वेदों को सुना गया था वो लिखित में मौजूद नहीं थे। इन वेदों को अलग करके ऋषि वेदव्यास जी ने लिखा जिसे हम ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद और सामवेद के नाम से जानते हैं। इन्हें महाभारत के लेखक के रूप में भी जाना जाता है और महाभारत के अलावा इन्होंने 18 पुराणों की भी रचना की थी। इनकी माता का नाम सत्यवती और पिता का नाम ऋषि पराशर था। इन्हे भी अमरता का वरदान प्राप्त है।
6- अश्वत्थामा
अश्वत्थामा महाभारत के एक बहुत ही महत्वपूर्ण पात्र रह चुके हैं। अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। कहते हैं कि गुरु द्रोणाचार्य एक बीटा चाहते थे जिसके लिए उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की। फिर शिव जी ने खुश होकर गुरु द्रोण को वरदान के तौर पर एक बेटा दे दिया और उसे बेटे को चिरंजीवी यानी अमर होने का वरदान दे दिया और सिर्फ इतना ही नहीं इस बच्चे के सिर पर एक ऐसी मणि थी जो उसे हर तरह के हथियार या फिर बीमारी से बचाएगी। अश्वत्थामा ने महाभारत में कौरवों की ओर से लड़ाई की थी। इनकी कुछ गलतियों की वजह से भगवान कृष्ण ने इन्हे श्राप दिया था। हुआ यूँ था कि जब महाभारत का युद्ध हुआ था तो इस युद्ध में दुर्योधन की हार और पांडवों की जीत हुई थी। अश्वत्थामा अपने सबसे अच्छे मित्र दुर्योधन को युद्ध भूमि में तड़पता देख विचलित हो उठे और पांडवों के पांच बच्चों को उन्होंने धोखे से मार दिया। फिर अभिमन्यु की विधवा पत्नी के पेट में पल रहे बच्चे को भी अश्वत्थामा ने मारने का प्रयास किया। फिर भगवान कृष्ण ने बच्चे को तो बचा लिया और अश्वत्थामा को दर्द और कुष्ठ रोग के साथ इस ब्रह्मांड के अंत तक जीवित रहने का श्राप दिया। इसके बाद भगवान कृष्ण अश्वत्थामा के माथे की मणि को भी ले लेते हैं।
Ashwathama |
दोस्तों कुछ साल पहले की एक बात सामने आई थी जिसमें मध्य प्रदेश के एक डॉक्टर का कहना है कि उसने अश्वत्थामा को देखा है। उस डॉक्टर ने बताया कि कुछ साल पहले उसके पास एक मरीज आया था जिसके सिर पर एक अजीब सा घाव था । फिर उस डॉक्टर ने बताया कि बहुत सारी ट्रीटमेंट के बावजूद भी उसका वह घाव भर नहीं रहा था। फिर एक दिन मजाक में डॉक्टर ने उस मरीज से पूछ लिया कि आपके माथे का घाव भर नहीं रहा कहीं आप अश्वत्थामा तो नहीं है। उसके बाद जो हुआ वह बहुत ही अजीब था। जैसे ही डॉक्टर ने यह पूछा उसके बाद बाद वह इंसान वहां से गायब हो गया और किसी स्टाफ ने उसे वहां से बाहर जाते हुए नहीं देखा। दोस्तों इसी तरह से अश्वत्थामा के बारे में और भी कई बातें सुनी गयी हैं।
7- कृपाचार्य
कृपाचार्य जी कौरवों और पांडवों के गुरु हैं। महाभारत के युद्ध में ऋषि कृपाचार्य ने कौरवों की तरफ से लड़ाई की थी। कृपाचार्य परम तपस्वी ऋषियों में शामिल है और इसी तप के कारण उन्हें अमरता का वरदान मिला था।
8- ऋषि मार्कंडेय
ऋषि मार्कंडेय भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त हैं और ये ८वें चिरंजीवी हैं। इन्ही ने शिव के शक्तिशाली महामृत्यंज्य मंत्र की रचना भी की। इन्हे अमरता का वरदान भगवान शिव से ही प्राप्त हुआ था।
मित्रों ये थे 8 चिरंजीवी जो अमर हैं।
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