ज्वाला देवी मंदिर। Jwala Devi Temple in Himachal Pradesh in India 

नमस्कार मित्रों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको भारत के एक रहस्यमयी मंदिर " ज्वाला देवी मंदिर " के बार में बताएंगे। ज्वाला देवी मंदिर भारत के रहस्यमयी मंदिरों में से एक है। Jwala Devi Temple अर्थात ज्वाला देवी मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के काँगड़ा में स्थित है और और अपनी ज्वालाओं के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। Jwala Devi Mandir की सबसे खास बात यह है कि यहाँ पर किसी भी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही इन 9 ज्वालाओं की पूजा की जाती है। 


Jwala Devi Temple in Himachal Pradesh in India , jwala devi Mandir
Jwala Devi Mandir


Jwala Devi Mandir कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दूरी पर स्थित है तथा यह ज्वाला देवी मंदिर मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। अब हम आपको ज्वाला देवी मंदिर ( Jwala Devi Temple ) से जुड़े रहस्य , इतिहास और मान्यताओं के बारे में बताएंगे। 

ज्वाला देवी कौन थी ?

इस ज्वाला देवी मंदिर ( Jwala Devi Mandir ) में 9 ज्वालायें बिना तेल और बाती के जल रही हैं तथा इन 9 ज्वालाओं को माता के 9 रूपों का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर में जो सबसे बड़ी ज्वाला जल रही है वह ज्वाला देवी तथा ज्वाला माता ( Jwala Mata ) कहलाती हैं और बाकि अन्य 8 ज्वालाओं के रूप में माँ अम्बिका , माँ अन्नपूर्णा , माँ विन्ध्वासिनी , माँ महालक्ष्मी , माँ चंडी देवी , माँ हिंगलाज माता , माँ सरस्वती तथा माँ अंजी देवी विद्यमान हैं। 

ज्वाला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई ?

मित्रों, अब हम आपको ज्वाला देवी की उत्पत्ति के बारे में बताएंगे। Jwala Devi Mandir भारतवर्ष के 51 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। इन ५१ शक्तिपीठ की उत्पत्ति कथा एक ही है जो भगवान शिव और सती से सम्बंधित है । ज्वाला देवी की उत्पत्ति की मान्यता इस प्रकार है।  एक समय की बात है भगवान शिव के ससुर यानि कि माता सती के पिता दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था।  

लेकिन राजा दक्ष ने भगवान शिव और सती को इस आयोजन में आमंत्रित नहीं किया था। लेकिन फिर भी सती उस यज्ञ में पहुँच गयी। उस यज्ञ स्थल पर भगवान शिव का काफी अपमान किया जाता है। फिर देवी सती इस बात को सहन नहीं कर पायी और फिर वे  हवन कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग देती हैं।  फिर जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वे बहुत क्रोधित होते हैं और दक्ष का वध करवा देते हैं। 

फिर हवनकुंड से सती के शरीर को निकाल कर तांडव करने लगते हैं और इस वजह से पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मच जाता है। फिर इस ब्रह्मांड को बचने के लिए भगवान विष्णु अपने सुदर्शन से सती के शरीर के 51 टुकड़े कर देते हैं। फिर देवी सती के शरीर के ५१ अंग  जहाँ जहाँ गिरते हैं वहां पर देवी शक्तिपीठ बन गए। कहते हैं कि ज्वालाजी शक्तिपीठ में  माता सती की जीभ यहाँ पर गिरी थी।  फिर इस जगह को शक्तिपीठ की मान्यता मिली ।  मित्रों, अब तो आप समझ चुके होंगे कि Jwala Devi की उत्पत्ति कैसे हुई थी ?


ज्वालायें मानी जाती हैं माँ के 9 स्वरूपों का प्रतीक

इस ज्वाला देवी मंदिर ( Jwala Devi Mandir ) में पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग अलग जगहों से ज्वालायें निकाल रही हैं। फिर इन्हीं 9 ज्वालाओं के ऊपर मंदिर बनाया गया और इस मंदिर में इन्हीं 9 ज्वालाओं की पूजा की जाती है। इन 9 ज्वालाओं को माता के 9 स्वरुप का प्रतीक माना जाता है। इन सभी में सबसे  बड़ी ज्वाला को ज्वाला माता ( Jwala Mata ) कहते हैं और बाकी की 8 ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां अम्बिका देवी, मां हिंगलाज माता, देवी मां सरस्वती और मां अंजी देवी हैं।  इस ज्वाला देवी मंदिर में 9 ज्वालाओं को माता के इन्हीं 9 स्वरूपों का प्रतीक मन जाता है। 

ज्वाला देवी मंदिर से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा 

मित्रों , Jwala Devi Mandir से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है जिसके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए। इस पौराणिक कथा के अनुसार ज्वालादेवी के एक बहुत बड़े भक्त थे जिनका नाम गोरखनाथ था। गोरखनाथ हमेशा माता की भक्ति में लीन रहता था।  एक समय की बात है गोरखनाथ को भूख लगने पर गोरखनाथ ने माँ से कहा कि माँ आप होनी गर्म करके रखें तब तक में भिक्षा मांगकर आता हूँ और फिर गोरखनाथ भिक्षा लेने के लिए वहां से चले गए और फिर लौटकर नहीं आये।  

अब मान्यता यह है कि ज्वाला देवी मंदिर ( Jwala Devi Temple ) में जल रही ज्वाला ये वही ज्वाला है जो माँ ने जलाई थी और वहां से कुछ दुरी पर एक कुंड है जहाँ के पानी से भाप निकलती प्रतीत होती है। यह जो कुंड है इस कुंड को गोरख नाथ की डिब्बी भी कहते हैं तथ एक मान्यता यह भी है कि इस कलयुग के अंत समय में गोरखनाथ वापस आएंगे और जब तक यह ज्वाला जलती रहेगी। मित्रों यह थी ज्वालादेवी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा। 


ज्वाला देवी और अकबर की कहानी | Story of Jwala Devi Temple and Akbar

कहते हैं कि एक बार बादशाह अकबर ने जब इस ज्वालादेवी मंदिर ( Jwala Devi Mandir )के बारे में सुना तो फिर उसने इस मंदिर की ज्वाला को बुझाने कि कई बार कोशिश की थी पर वह कामयाब न हो सका। बाधशन अकबर ने अपनी सेना बुलाकर कई तरीकों से मंदिर की ज्वाला बुझाने की कोशिश की पर वह मंदिर की ज्वाला जो बुझा न सका। 

फिर यहाँ तक की उसने नहर तक खुदाई करवाने की कोशिश की पर वह सफल न हुआ। 

फिर ज्वाला देवी के इस चमतकार को देख कर बादशाह अकबर झुक गया और नतमस्तक हो गया। फिर अकबर ने सवा मन का सोने का छत्र चढ़ाने की कोशिश की लेकिन Jwala Mata ने उस छत्र को स्वीकार नहीं किया और उसे किसी अन्य धातु में बदल दिया। वह धातु कौन सी थी आजतक कोई नहीं पता लगा पाया।  मित्रों यह थी कथा अकबर और ज्वाला देवी की। 

निष्कर्ष - ज्वाला देवी मंदिर। Jwala Devi Temple in Himachal Pradesh in India 

मित्रों, आपको हमारा आज का आर्टिकल " ज्वाला देवी मंदिर। Jwala Devi Temple in Himachal Pradesh in India "  कैसा लगा ? अगर इस आर्टिकल से जुड़ा आपके मन में कोई प्रश्न है तो फिर आप हमें मेल करके पूछ सकते हैं या फिर कमेंट करके पूछ सकते हैं।